करवा चौथ

करवा चौथ

परिचय: करवाचौथ का महत्व

 

करवाचौथ भारतीय महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत में विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और समृद्धि के लिए मनाती हैं। यह त्योहार उनके सच्चे प्रेम और समर्पण का प्रतीक होता है। करवाचौथ का व्रत कठोर होता है, जिसमें महिलाएं सूर्योदय से चंद्रमा के दर्शन तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहती हैं।


करवाचौथ की कहानी

 

 

वीरवती की कथा: प्रेम और तपस्या की मिसाल

वीरवती एक अत्यंत सुंदर और प्रिय राजकुमारी थी। वह अपने सात भाइयों की एकमात्र बहन थी, और इसीलिए उसके भाई उसे बेहद प्यार करते थे। जब वीरवती का विवाह हुआ, तो उसने अपनी नई ज़िंदगी में खुशियाँ और सौभाग्य प्राप्त किया। लेकिन पति के प्रति उसका प्रेम इतना गहरा था कि उसने करवाचौथ का कठोर व्रत रखने का निश्चय किया।

यह वीरवती का पहला करवाचौथ था, और उसने पूरी श्रद्धा और समर्पण से व्रत रखा। सूर्योदय से पहले उसने सरगी ग्रहण की और फिर पूरे दिन बिना अन्न और जल के व्रत किया। हालाँकि दिन के अंत तक वह बेहद थक गई और भूख-प्यास से कमजोर महसूस करने लगी। उसके भाइयों से अपनी बहन की ये हालत देखी नहीं गई।

वीरवती के भाई अपनी बहन की हालत से चिंतित थे। वे नहीं चाहते थे कि उसकी तबियत बिगड़ जाए, इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई। वे घर के पास एक पेड़ पर चढ़े और वहां से छलनी के पीछे दीपक रखकर एक नकली चंद्रमा का दृश्य बना दिया। फिर उन्होंने अपनी बहन को दिखाते हुए कहा, “देखो, चंद्रमा निकल आया है, अब तुम अपना व्रत तोड़ सकती हो।”

वीरवती को भाइयों की यह चाल समझ नहीं आई, और अपने भाइयों की बात मानते हुए उसने चंद्रमा को देख लिया और व्रत तोड़ दिया। उसने पानी पीकर और भोजन ग्रहण कर लिया, लेकिन जैसे ही उसने यह किया, उसे अपने पति की मृत्यु का समाचार मिल गया। यह सुनकर वीरवती का दिल टूट गया।

अपने पति की मृत्यु की खबर सुनकर वीरवती व्याकुल हो गई। वह पूरी तरह से टूट चुकी थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह अपने पति को वापस पाने के लिए देवी पार्वती की कठोर तपस्या में लीन हो गई। उसने दिन-रात देवी पार्वती से प्रार्थना की और उनकी कृपा पाने के लिए कठिन साधना की।

वीरवती का प्रेम और तपस्या देखकर देवी पार्वती प्रसन्न हो गईं। उन्होंने वीरवती को आशीर्वाद दिया और उसके पति को जीवनदान दे दिया। इस तरह, वीरवती का प्रेम और उसकी श्रद्धा ने उसे फिर से उसके पति के साथ मिला दिया। तब से, करवाचौथ का व्रत महिलाओं के लिए एक अटूट विश्वास और प्रेम का प्रतीक बन गया।


 

 

करवाचौथ की पूजन विधि

1. करवाचौथ व्रत प्रारंभ कैसे करें?

करवाचौथ का व्रत सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ खाकर शुरू होता है। सरगी वह भोजन होता है जिसे महिलाएं सूरज उगने से पहले अपनी सास से प्राप्त करती हैं। इसमें मिठाई, फल, मेवे और पानी शामिल होते हैं। इसे खाकर व्रती दिनभर बिना भोजन और पानी के व्रत करती हैं।

2. पूजन सामग्री:

  • मिट्टी का करवा (कलश)
  • दीपक
  • कुमकुम और हल्दी
  • चावल
  • मिठाई (खीर या लड्डू)
  • पानी का पात्र
  • फल (विशेषकर अनार और नारियल)
  • फूलों की माला
  • पूजा की थाली
  • छलनी (चंद्र दर्शन के लिए)

3. करवाचौथ पूजन विधि:

करवाचौथ की पूजा शाम के समय, चंद्रमा उदय होने से पहले होती है। महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनने के बाद पूजन करती हैं। सबसे पहले पूजा की थाली में दीपक जलाकर भगवान गणेश और माता पार्वती की पूजा की जाती है। करवा (मिट्टी का घड़ा) को पानी से भरकर उसमें चावल और फूल डालकर उसे पूजन स्थल पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद कथा सुनकर और आरती करके पति की दीर्घायु की कामना की जाती है।

पहली बार करवाचौथ कैसे करें?

अगर आप पहली बार करवाचौथ कर रही हैं, तो इस बात का विशेष ध्यान रखें कि व्रत को श्रद्धा और निष्ठा से करना बहुत महत्वपूर्ण है। शुरुआत में हो सकता है कि आपको व्रत रखना कठिन लगे, लेकिन सरगी से प्राप्त ऊर्जा आपको दिनभर बिना भोजन और पानी के सहारा देती है। पहली बार व्रत रखने पर आपके परिवार, खासकर सास का मार्गदर्शन महत्वपूर्ण होता है।

  1. सरगी का महत्त्व: सरगी एक महत्वपूर्ण परंपरा है। यह व्रत शुरू करने से पहले महिलाओं को आवश्यक ऊर्जा और शक्ति प्रदान करती है।
  2. व्रत कथा सुनना: व्रत रखने वाली महिलाओं के लिए करवाचौथ की कथा सुनना अनिवार्य होता है, क्योंकि इससे व्रत को धार्मिक और आध्यात्मिक शक्ति मिलती है।
  3. चंद्रमा का पूजन: जब चंद्रमा उदित होता है, तो महिलाएं छलनी से चंद्र दर्शन करती हैं और फिर पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं।

करवाचौथ व्रत कथा

करवा: एक सच्ची पतिव्रता

बहुत समय पहले की बात है, करवा नामक एक स्त्री थी जो अपने पति से बेहद प्रेम करती थी। करवा का जीवन उसकी भक्ति, समर्पण और अपने पति के प्रति अटूट विश्वास से भरा था। वह अपने पति के लिए सबकुछ त्यागने को तैयार रहती थी और उसकी हर सांस में बस अपने पति के कल्याण की प्रार्थना होती थी।

करवा और उसके पति का जीवन खुशहाल था। उनके बीच प्रेम और सम्मान का ऐसा बंधन था, जो किसी भी परिस्थिति में टूटने वाला नहीं था। करवा अपने पति के प्रति समर्पण की ऐसी मिसाल थी कि उसकी भक्ति और प्यार की चर्चा दूर-दूर तक फैली थी।

एक दिन करवा का पति नदी के किनारे स्नान करने गया। जब वह नदी में डुबकी लगा रहा था, तभी एक विशाल मगरमच्छ ने उसे अपने जबड़े में जकड़ लिया। पति की चीख-पुकार सुनकर करवा का हृदय कांप उठा। उसकी आंखों के सामने उसके जीवनसाथी का जीवन खतरे में था, लेकिन करवा ने हार मानने के बजाय साहस से काम लिया।

करवा भागकर नदी के किनारे पहुंची, और अपनी आँखों के सामने अपने पति को मगरमच्छ के चंगुल में देख उसकी आत्मा तक हिल गई। लेकिन उसके दिल में अपने पति के प्रति इतना गहरा प्रेम और विश्वास था कि उसने अपनी आस्था से उस मगरमच्छ को रोकने का संकल्प लिया।

करवा ने तुरंत एक मजबूत धागा उठाया और मगरमच्छ को बांध दिया। उसकी शक्ति और साहस से मगरमच्छ हिल तक नहीं पाया। करवा ने मगरमच्छ को पूरी तरह से बांधकर यमराज का आह्वान किया। यमराज, जो मृत्यु के देवता हैं, जब करवा के बुलावे पर प्रकट हुए, तो उन्होंने मगरमच्छ को देखकर कहा कि इसका समय पूरा हो चुका है, और अब इसे मारा जाएगा।

लेकिन करवा, जो अपने पति के जीवन की रक्षा के लिए सबकुछ दांव पर लगाने को तैयार थी, ने यमराज से प्रार्थना की, “हे यमराज, मेरे पति की आयु अभी शेष है। मगरमच्छ ने उसे बिना कारण घायल किया है। मैं आपसे विनती करती हूं कि आप मेरे पति को जीवनदान दें और इस मगरमच्छ को दंडित करें।”

यमराज ने करवा की बात सुनकर उसे समझाने की कोशिश की कि मृत्यु अटल है, और मगरमच्छ का समय आ चुका है। लेकिन करवा अपनी जगह डटी रही। उसका प्रेम और समर्पण इतना दृढ़ था कि उसने यमराज को चेतावनी दी, “यदि आपने मेरे पति को जीवनदान नहीं दिया, तो मैं आपको श्राप दूंगी।”

करवा की अटूट भक्ति और साहस को देखकर यमराज हतप्रभ रह गए। उन्होंने उसकी निष्ठा और प्रेम के आगे सिर झुका लिया। यमराज ने मगरमच्छ को उसके पापों के लिए दंडित किया और करवा के पति को जीवनदान दे दिया। करवा के इस समर्पण ने साबित कर दिया कि सच्चा प्रेम और निष्ठा किसी भी विपत्ति का सामना कर सकते हैं। यमराज ने करवा को आशीर्वाद दिया कि वह और उसका पति जीवनभर सुखी और समृद्ध रहें।


 

 

कथा सुनने का महत्त्व

इस कथा को सुनने के बाद व्रत का वास्तविक पुण्य प्राप्त होता है। यह कथा पति-पत्नी के अटूट रिश्ते और जीवन में आने वाली कठिनाइयों को दूर करने का प्रतीक है।


करवाचौथ की आरती

ओम जय करवा मैया, माता जय करवा मैया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया.. ओम जय करवा मैया।

सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी.. ओम जय करवा मैया।

कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती.. ओम जय करवा मैया।

होए सुहागिन नारी, सुख संपत्ति पावे।
गणपति जी बड़े दयालु, विघ्न सभी नाशे.. ओम जय करवा मैया।

करवा मैया की आरती, व्रत कर जो गावे।
व्रत हो जाता पूरन, सब विधि सुख पावे.. ओम जय करवा मैया।


करवाचौथ की पूजा के बाद आरती का विशेष महत्व है। आरती गाकर और थाली घुमाकर माता पार्वती और भगवान शिव से परिवार की सुख-समृद्धि और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना की जाती है। आरती के बाद महिलाएं सभी उपस्थित लोगों को प्रसाद बांटती हैं।

करवाचौथ की रात को पति-पत्नी क्या करते हैं?

करवाचौथ की रात पति-पत्नी के लिए बेहद खास होती है। जैसे ही चंद्रमा निकलता है, महिलाएं छलनी से चंद्रमा और फिर अपने पति का दर्शन करती हैं। पति अपनी पत्नी को पानी पिलाकर व्रत तुड़वाते हैं। इस रात को पति-पत्नी एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार और समर्पण को महसूस करते हैं। यह समय एक-दूसरे के साथ बिताने का होता है, जिसमें वे अपने रिश्ते को और मजबूत बनाते हैं।

 

करवाचौथ व्रत के पीछे का मुख्य उद्देश्य पति की लंबी आयु और खुशहाल जीवन के लिए प्रार्थना करना होता है। पति अपनी पत्नी के इस कठिन तप और प्रेम की सराहना करते हैं और उन्हें आभार स्वरूप उपहार भी देते हैं। यह दिन उनके बीच आपसी समझ, प्यार और सम्मान को और गहरा बनाता है।

करवाचौथ से जुड़ी कुछ विशेष बातें

  1. छलनी का उपयोग: चंद्रमा को छलनी से देखने की परंपरा क्यों है? इसका महत्व यह है कि छलनी से देखने से बुरी नजर दूर होती है और पति-पत्नी का रिश्ता और मजबूत बनता है।
  2. करवाचौथ का वैज्ञानिक महत्व: करवाचौथ व्रत रखने से महिलाओं की सहनशक्ति बढ़ती है और शरीर को डिटॉक्स करने में मदद मिलती है। बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहना स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है।
  3. पति का सहयोग: कुछ स्थानों पर पति भी अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखते हैं, ताकि वे उनके समर्पण को और भी समझ सकें और उनका सम्मान बढ़ सके।

 

 

 

 

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