समरसता का दीप जलाएं समरसता का दीप जलाएं, प्यार-मुहब्बत साथ बढ़ाएं। जाति-धर्म के भेद मिटाकर, भाईचारे की राह दिखाएं।। आओ मिलकर करें ये वादा, भेदभाव को दूर भगाएं। भीमराव के सपनों का भारत, हर कोने में खुशी सजाएं।। समरसता का दीप जलाएं, प्यार-मुहब्बत साथ बढ़ाएं। समानता की बात करें हम, उन्नति की पहचान बनाएं। दूर करें अज्ञान का अंधेरा, ज्ञान रूप प्रकाश फैलाएं।। समरसता का दीप जलाएं, प्यार-मुहब्बत साथ बढ़ाएं। भेदभाव की दीवार गिराकर, नया सवेरा हम लाएं। सब को पूरा मान मिले, ऐसा सुंदर कल बनाएं।। समरसता का दीप जलाएं, प्यार-मुहब्बत साथ बढ़ाएं। समरसता दिवस ( samarasata diwas
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समरसता दिवस
समरसता दिवस का परिचय ( samarasata diwas ) समरसता दिवस भारत मे सामाजिक समानता और एकता को बढ़ावा देने के लिए मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण अवसर है। इस दिन का उद्देश्य “समाज मे जाति, धर्म और आर्थिक असमानताओ को समाप्त करना और सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर प्रदान करना है।” समरसता दिवस का मुख्य संदेश यही है कि समाज में सभी को समान दृष्टि से देखा जाए और किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त किया जाए। समरसता दिवस का ऐतिहासिक महत्व ( Historical importance of samarasata diwas ) समरसता दिवस मनाने की प्रेरणा भारत रत्न डॉ.
करवा चौथ
परिचय: करवाचौथ का महत्व करवाचौथ भारतीय महिलाओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है, जिसे मुख्य रूप से उत्तर भारत में विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी आयु और समृद्धि के लिए मनाती हैं। यह त्योहार उनके सच्चे प्रेम और समर्पण का प्रतीक होता है। करवाचौथ का व्रत कठोर होता है, जिसमें महिलाएं सूर्योदय से चंद्रमा के दर्शन तक बिना अन्न और जल ग्रहण किए रहती हैं। करवाचौथ की कहानी वीरवती की कथा: प्रेम और तपस्या की मिसाल वीरवती एक अत्यंत सुंदर और प्रिय राजकुमारी थी। वह अपने सात भाइयों की एकमात्र बहन थी, और
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हिंदी दिवस हर साल 14 सितंबर को मनाया जाता है। इसे हिंदी भाषा के महत्व को उजागर करने और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से मनाया जाता है। हिंदी दिवस के बारे में प्रमुख तथ्य: इस प्रकार से है । 14 सितंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा ने हिंदी को भारत की राजभाषा के रूप में स्वीकार किया गया था। इसे यादगार बनाने के लिए 1953 से हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है ।वर्ष 1918 में हुए एक “हिंदी साहित्य सम्मेलन” में गांधीजी के द्वारा हिंदी को “राजभाषा” बनाने पर जोर दिया