देश की एक ऐसी शख्सियत जो एक कवि, उपन्यासकार, नाटककार , चित्रकार और दार्शनिक थे । एशिया के ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्हें नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और उनके द्वारा लिखें गए गीत आज भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रगान है ऐसे व्यक्तित्व को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के नाम से जाना जाता है ।
इनका जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ था वह अपने माता पिता की तेहरवी संतान थे पिता का नाम देवेंद्र नाथ टैगोर और उनकी माता का नाम शारदा देवी था
1883 में उनका विवाह मृणालिनी देवी से हुआ था।
शिक्षा – टैगोर की स्कूली शिक्षा सेंट जेवियर स्कूल से पूरी हुई । उनके पिता देवेंद्रनाथ उन्हें बैरिस्टर बनाना चाहते थे । इसलिए इंग्लैंड के ब्रिजटोन पब्लिक स्कूल में नाम दर्ज कराया और लंदन कॉलेज विश्वविद्यालय से लॉ की पढ़ाई की लेकिन उन्हें तो बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने में रुचि थी इसलिए बिना लॉ की डिग्री प्राप्त किए ही वापस भारत आ गए।
संग्रह – भारत आकर उन्होंने “रुद्रचक्र” और “संध्या संगीत” नाम के दो पद्य नाटकों की रचना की ।
• गीतांजलि – कविताओं का एक संग्रह है जिसके लिए उन्हें 1913 में नोबेल प्राइज से सम्मानित किया गया था
• जन गण मन – टैगोर के द्वारा लिखा गया था जिसे 24 जनवरी 1950 को भारत के राष्ट्रगान के रूप में चुना गया था।
• अमर सोनार बांग्ला – को बांग्लादेश ने अपने राष्ट्रगान के रूप में चुना । जिसे टैगोर जी ने 1905 में बंगाल विभाजन के समय लिखा था।
• टैगोर जी ने अपने जीवन में लगभग 2230 गीतों की रचना की है।
निधन – देश के साहित्य में प्रशंसनीय योगदान देने वाले गुरुदेव का निधन 7 अगस्त 1941 को कोलकाता में हुआ।
अनमोल विचार –
1. किसी बच्चे की शिक्षा अपने ज्ञान तक सीमित मत रखिए, क्योंकि वह किसी और समय में पैदा हुआ है।
कभी भी बच्चें के ज्ञान को अपने ज्ञान तक सीमित रखने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि आपके ज्ञान में और आपके बच्चें के ज्ञान में समय के अनुसार डिफरेंस होना स्वाभाविक है
आपके ज्ञान में और आपसे पहले की जनरेशन के ज्ञान में भी अंतर है इसलिए आपके और आपके बच्चें की नॉलेज में भी डिफरेंस होगा ही होगा। क्योंकि यह सब समय के अकॉर्डिंग निर्धारित होता है
2. आइए, हम यह प्रार्थना न करें कि हमारे ऊपर खतरे न आए, बल्कि यह प्रार्थना करें कि हम उनका निडरता से सामना करें।
हमें अपने ऊपर आने वाले खतरों या समस्याओं को टालने की प्रार्थना नहीं करनी चाहिए बल्कि यह प्रार्थना करनी चाहिए की उन समस्याओं से निडरता के साथ मुकाबला कर सके। क्योंकि जब जब आप किसी समस्या या खतरों से मुक़ाबला करते हैं आप मज़बूत होते जाते है आपमें आत्मविश्वास प्रबल होता जाता है और जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक है।
3. सिर्फ नदी किनारे खड़े होकर पानी देखने से आप नदी पार नहीं कर सकते।
जिस प्रकार नदी के पास खड़े होकर केवल पानी को देखने से आप नदी पार नहीं कर सकते उसी प्रकार इस संघर्षशील जीवन की समस्याओ को निहारने मात्र से उन्हें दूर नहीं किया जा सकता। इसके लिए हमें उन समस्यायो से लड़ना होगा। उसकी गहराइयों में उतरना होगा । इनके एक एक पहलुओं को समझना होगा तभी जाकर इन समस्याओं के पार जाया जा सकता है।
4. फुल की पंखुड़िया तोड़कर आप उसकी खूबसूरती को इकट्ठा नहीं कर सकते।
हमें कभी भी दूसरों की प्रगति से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। बल्कि वे किस प्रकार संघर्ष करके इस मुकाम तक पहुंच पाए है उसका अनुसरण करना चाहिए।
5. जो कुछ हमारा है वह हमारे तक तभी पहुंचता है जब हम उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित कर लेते हैं।
जीवन ने हमें बहुत कुछ दिया है लेकिन वो हमारे तक तभी पहुंच पाएगा जब हम उसे प्राप्त करने की क्षमता विकसित कर ले। यदि हममें सामर्थ्य है तो हम सब कुछ प्राप्त कर सकते है वरना जो प्राप्त है उसे खो भी सकते है।