5 फरवरी गुरु रविदास जयंती

 5 फरवरी गुरु रविदास जयंती
15 वीं सदी के महान संत गुरु रविदास जातिवाद और आध्यात्मिकता के खिलाफ अपने कार्यों के लिए पूजनीय हैं।
रविदास जी को गुरु रविदास, संत रविदास, भक्त रविदास, रैदास, रूहीदास और रोहिदास के नाम से भी जाना जाता है।
माना जाता है कि उनका जन्म 5 फरवरी 1398 में माघ मास की पूर्णिमा को वाराणसी के सीर गोवर्धनपुर गांव, जो अब उत्तर प्रदेश में है जन्म हुआ था जिसे अब श्री गुरु रविदास जन्म स्थान के नाम से भी जाना जाता है ।
संत रविदास के पिता का नाम रघु और माता का नाम धुरविनिया था ।
वे एक समाज सुधारक, मानवतावादी, विचारक, धार्मिक मानव और महान कवि थे।
उन्होंने ईश्वर, गुरु, ब्रह्मांड और प्रकृति के साथ प्रेम का संदेश देते हुए मनुष्य की अच्छाई पर हमेशा जोर दिया है।
रविदास जी के संत बनने की एक पौराणिक कथा है कि बचपन में रविदास जी अपने मित्र के साथ खेल रहे थे दूसरे दिन जब वह मित्र खेलने के लिए नहीं आया तो वे उसे ढूंढने के लिए जाते हैं लेकिन उन्हें पता चलता है कि वह मर चुका है इस बात को लेकर वे बहुत दुखी होते हैं और अपने दोस्त से कहते हैं कि “उठो , यह सोने का समय नहीं है मेरे साथ खेलो । यह सुनकर वह मृत साथी खड़ा हो जाता है ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बचपन से ही उनमें अलौकिक शक्तियां विद्यमान थी और उन्हीं शक्तियों का उपयोग करते हुए आगे चलकर लोगों की भलाई में अपनी शक्तियों का उपयोग किया और ईश्वर भक्ति में समर्पित कर दी ।
संत रविदास चमार जाति से थे वह अपने जीवन यापन के लिए जूते बनाने का काम करते थे
संत रविदास जी की एक कथा के अनुसार वह एक दिन अपनी कुटिया में प्रभु को याद करते हुए जूते बनाने का काम कर रहे थे उसी समय वहां एक ब्राह्मण आया और बोला की है संत महाराज में स्नान करने जा रहा था रास्ते में आपके दर्शन की इच्छा हुई तो यहां चला आया । रविदास जी ने उस ब्राह्मण को एक मुद्रा देते हुए कहा कि है ब्राह्मण इस मुद्रा को मेरी तरफ से गंगा मैया को अर्पण कर देना ।
वह ब्राह्मण देवता उस मुद्रा को लेकर के गंगा स्नान करने चला गया स्नान करने के बाद उस मुद्रा को अर्पण करते हुए देवी गंगा से प्रार्थना करते हुए कहा कि हे मैया इस मुद्रा को स्वीकार करें तभी वहां पर गंगा मैया प्रकट हुई और उस मुद्रा के बदले में उस ब्राह्मण को एक कंगन दे दिया
उस कंगन को लेकर के ब्राह्मण राजा के पास गया राजा उस कंगन को देख कर बड़ा प्रसन्न हुआ और उसके बदले में उस ब्राह्मण को धन दौलत दे करके विदा कर दिया राजा ने वह कंगन अपनी पत्नी को दिखाया पत्नी कंगन पा करके बड़ी प्रसन्न हुई और राजा से कहा कि है महाराज मुझे ऐसा ही दूसरा कंगन भी चाहिए ।
राजा ने उस ब्राह्मण को बुलाया और दूसरा कंगन लाने को कहा यदि दूसरा कंगन नहीं लेकर जाते हो तो तुम्हें दंडित किया जाएगा । दंड की वजह से घबराकर वह ब्राह्मण संत रविदास जी के पास पहुंचा और माफी मांगने लगा कि है संत महाराज मैंने आपको बिना पूछे हुए गंगा मैया से प्राप्त कंगन राजा को दे दिया और राजा अब दूसरे कंगन की मांग कर रहा है अगर मैने दूसरा कंगन राजा को नहीं दिया तो वह मुझे दंडित करेगा । रविदास जी ने ब्राह्मण को शांत कराया और कहा है ब्राह्मण देवता तुम चिंता मत करो मैं तुम्हारी समस्या का समाधान करूंगा ।
संत रविदास जी ने अपने चमड़ा गलाने के बर्तन से पानी लिया और गंगा मैया को अर्पण करते हुए कंगन के लिए प्रार्थना की तभी गंगा मैया प्रकट हुई और वैसा ही दूसरा कंगन दे दिया।
इस बात से ब्राह्मण देवता प्रसन्न हो गया और हमेशा हमेशा के लिए रविदास जी का भक्त हो गया।

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