देश की आजादी मैं एक महत्वपूर्ण योगदान देने वाले असाधारण नेतृत्व कौशल के धनी, क्रांतिकारी विचारक नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 में कटक, उड़ीसा के एक धनाद्य परिवार में हुआ इनके पिता जानकीनाथ बोस एक सफल वकील थे और माता का नाम प्रभावती देवी था उनकी पत्नी का नाम एमिली और बच्चे का नाम अनीता बोस था
इनका जन्म हुआ 1897 में और यह 1902 में पहली बार स्कूल गए
1902 से लेकर 1912 तक इन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा कटक के एक मिशनरी स्कूल प्रोटेस्टेंट यूरोपियन से कंप्लीट की। इस स्कूल से ही उन्होंने ब्रिटिश और भारतीयों के बीच में होने वाले डिस्क्रिमिनेशन ( भेदभाव) को समझने का प्रयास किया और जब 1912 में इन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश किया तब डिस्क्रिमिनेशन के प्रति अपना गुस्सा प्रबल हो गया।
उनके नेतृत्व कौशल के कारण 1916 में उन्हे प्रेसीडेंसी कॉलेज का अध्यक्ष बनाया गया। इसी कॉलेज में ब्रिटिश और भारतीयों के बीच में भेदभाव के कारण सुभाष के नेतृत्व में स्ट्राइक की गई और ब्रिटिश प्रोफेसर और छात्रों में झड़प होने के कारण सुभाष चंद्र बोस को कॉलेज प्रिंसिपल ने सुभाष कॉलेज से रेस्ट गेट कर दिया।
कॉलेज से रेस्टिगेट होने के बाद अपने फ्यूचर और 1916 में अपने गांव में फैली कोलेरा नामक भयानक बीमारी से मरने वाले लोगों से व्यथित हो उठे और ब्रिटिश सरकार से भारत को आजादी दिलाने की ओर अग्रसर हो गए।
सुभाष चंद्र बोस के आइडल थे स्वामी विवेकानंद और अरविंदो घोष। 15 वर्ष की आयु में इन्होंने स्वामी विवेकानंद और अरविंदो घोष के बारे में लिखी गई सभी किताबों को पढ़ लिया और इन्हीं किताबों का प्रभाव आप उनके व्यक्तित्व पर भी देख सकते हैं।
1919 में अपने पिता और भाई शरद चंद्र बोस के कहने पर ICS (इंडियन सिविल सर्विस) परीक्षा की तैयारी के लिए इंग्लैंड चले गए और मात्र एक वर्ष से भी कम समय की तैयारी होने के बावजूद अपनी लगन और प्रतिभा के बलबूते ICS एग्जाम में 4TH रैंक हासिल की।
ICS एग्जाम में 4th रैंक हासिल करने के बाद भी इन्होंने अंग्रेजों की नौकरी करने से मना कर दिया क्योंकि अंग्रेजों से तो देश को आजाद कराना इनका प्रथम ध्येय था और यदि ये नौकरी करते तो अंग्रेजों की गुलामी करना होता।
जब यह इंग्लैंड से आए भारत में 1920 में गांधी जी के द्वारा असहयोग आंदोलन चलाया जा रहा था क्रांतिकारी विचारों वाले सुभाष चंद्र बोस के मन में भी भारत को आजाद करने में अपना योगदान देने की इच्छा प्रबल हो गई।
1921 में पहली बार उनकी मुलाकात दो प्रसिद्ध व्यक्तियों सीआर दास ( चितरंजन दास )जो कि उनके राजनीतिक गुरु भी रहे और महात्मा गांधी जी से हुई ।
देश के प्रति उनकी निष्ठा और नेतृत्व कौशल को देखते हुए 1923 में इन्हें पहली बार अखिल भारतीय युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया।
क्रांतिकारी विचारों के कारण अंग्रेजों को हमेशा इनसे डर बना रहता था इसलिए बार-बार अंग्रेजों के द्वारा इन्हें जेल में डाला गया। ( 10 – 12 बार)
1925 में सुभाष चंद्र बोस को मांडली जेल में (जो की एक भयानक जेल थी ) डाला गया। यहां इन्हें भयानक बीमारी टी.बी .ने घेर लिया । कुछ समय बाद जेल से रिहा हो गए
1928 में कोलकाता अधिवेशन हुआ जिसकी अध्यक्षता जवाहरलाल नेहरू के द्वारा की गई और अधिवेशन की कमान सुभाष चंद्र बोस को सोपी गई क्योंकि कोलकाता इनका होम एरिया था। इन्होंने इस अधिवेशन के लिए एक कोर कमेटी का गठन किया जिसका नाम था “स्वयंसेवक संघ कौर”
1930 में गांधी जी के द्वारा संचालित सविनय अवज्ञा आंदोलन की कमान भी सुभाष चंद्र बोस को दे दी गई और इस दौरान इन्हें फिर से अंग्रेजों के द्वारा जेल में डाल दिया गया।
1930 में इन्होंने जेल से अध्यक्ष के लिए पर्चा भरा और कोलकाता के मेयर बन गए।
बार-बार जेल जाने के कारण यह भयानक बीमारी टी.बी.से ग्रसित हो गए थे और 1933 से 1936 तक अपनी बीमारी का इलाज करवाने यूरोप चले गए।
यहां यूरोप में 1934 में एमिली नामक महिला से मिले उसे अपना सेक्रेटरी भी बनाया और 1937 में एमिली से शादी कर ली गई इनकी एक पुत्री ( 1942 ) भी हुई जिसका नाम अनीता बोस रखा गया ।
यूरोप से भारत आने के बाद 1938 के कांग्रेस अधिवेशन हरिपुरा ( गुजरात )के कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए यहां पर उन्होंने अपने भाषण में भारत की आजादी के लिए “सेना और संगठन की आवश्यकता होने” की बात कही जो कि गांधी जी के अहिंसात्मक विचारों के खिलाफ थी। इस बात से गांधी जी नाराज हो गए और 1939 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष में चुनाव लड़ने के लिए गांधी जी ने सुभाष चंद्र बोस को मना कर दिया फिर भी वे चुनाव लड़े और जीत गए। यहां गांधी जी ने अपने आप को हारा हुआ समझ लिया।
सुभाष चंद्र बोस का अंग्रेजों में इतना डर बैठ चुका था कि की 1941 में उन्हें अंग्रेजों के द्वारा घर में नजरबंद कर दिया गया ।
यहां से सुभाष चंद्र बोस का एक नया सफर शुरू हुआ और अपने देश की आजादी के लिए अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए सेना और संगठन की आवश्यकता समझते हुए वहां से भेष बदलकर बाहर निकल गए।
सफर की दुर्गम परिस्थितियों को पार करते हुए सुभाष चन्द्र बोस कोलकाता से पेशावर, पेशावर से काबुल, मास्को , रोम होते हुए बर्लिन में पहुंचे। बर्लिन में पहुंचने के बाद सुभाष चंद्र ने हिटलर से मुलाकात की और भारत की आजादी के सहयोग की पेशकश की। लेकिन हिटलर ने साथ देने से मना कर दिया।
उसके बाद हिटलर की मदद से सुभाष चंद्र बोस जापान पहुंच गए 1942 में जापान के पीएम तोजो ने भारत की आजादी में सहयोग के लिए सहमति दे दी।
जापान की मदद से सुभाष चंद्र बोस ने यहां INA को पुनर्गठित किया और गांधी ब्रिगेड, रानी झांसी ब्रिगेड, नेहरू ब्रिगेडओर सुभाष ब्रिगेड के नाम से छोटी-छोटी सेना की टुकड़िया बनाई।
इस प्रकार नेताजी सुभाष चंद्र बोस के द्वारा अपने देश को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाने के लिए सेना को संगठित करते हुए आजाद हिंद फौज का गठन किया और “जय हिंद” व “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा” ऐसे नारों से सेना में जोश भरते हुए अपने देश के रवाना हो गए। लेकिन दुर्भाग्य वश ऐसा कहा जाता है कि लौटते समय 18 अगस्त 1945 में ताइवान में दुर्घटना वश उनकी मृत्यु हो गई जो आज भी रहस्य बनी हुई है।
आज़ाद हिन्द सरकार के 75 वर्ष पूर्ण होने पर इतिहास में पहली बार वर्ष 2018 में भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने लाल क़िला पर तिरंगा फहराया। 23 जनवरी 2021 को नेताजी की 125वीं जयंती है जिसे भारत सरकार के निर्णय के तहत पराक्रम दिवस के रूप में मनाया गया ।8 सितम्बर 2022 को नई दिल्ली में राजपथ, जिसका नामकरण कर्तव्यपथ किया गया है , पर नेताजी की विशाल प्रतिमा का अनावरण किया गया ।
नेताजी के अनमोल विचार
“अगर जीवन में संघर्ष ना रहे किसी भी भय का सामना न करना पड़े तो जीवन का आधा स्वाद ही समाप्त हो जाता है।“
“सफलता का सफर लंबा हो सकता है लेकिन सफलता का मिलना तय है इसलिए हमें आगे बढ़ते रहना चाहिए।“
“सफलता हमेशा असफलता के स्तंभ पर खड़ी होती है इसलिए किसी को भी असफलता से घबराना नहीं चाहिए।“
“आशा की कोई न कोई किरण होती है जो हमें कभी जीवन से भटकने नहीं देती।“
“सफल होने के लिए आपको अकेले चलना होगा लोग तो तब आपके साथ आते हैं जब आप सफल हो जाते हैं।“
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